कार्डियक रिहेबिलिटेशन

ह्रदयरोग एग गम्भीर ओर जानलेवा रोग है, इसके बाद भी बहुत कॉमन हो जाने से ओर बहुत बड़ी संख्या में लोगो को प्रभावित कर लेने से लोग इसे तब तक बहुत हल्के में लेता है जब तक इसके कारण कम से कम एक बार ICU की सेर न कर ली जाए। बहुत ही कम रोगियों में सीधा हर्ट अटेक देखने मे आता है, जबकि अधिकांशतः रोगियों में कई प्रकार के साधारण लक्षण देखने को मिलते हैं जिन्हें उचित समय पर सही उपचार द्वारा पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है जैसे-
- कभी कभी सीने में दर्द या भारीपन होना।
- चलने में सांस फूलना।
- धड़कन मनसुस होना।
- ब्लड प्रेशर बढ़ना या घटना।
- सामान्य कामकाज में थकान, कमजोरी और चक्कर आना।
- घबराहट या बेचेनी होना इत्यादि।
यदि सही समय पर हम उचित चिकित्सा परामर्श के माध्यम से सही ट्रीटमेंट ले लेते है तो यह रोग न तो गम्भीर अवस्था तक नही पहुँचता है ओर न ही एंजियोप्लास्टी या बाईपास सर्जरी जैसे रिस्की ओर महंगे ट्रीटमेंट की आवश्यकता पड़ती है।
हृदयरोग से कैसे बचें

जो लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक है और समय समय पर चिकित्सा परामर्श भी लेते है, उनमे भी कई लोग जानकारी के अभाव में इसे प्रारम्भ से ही असाध्य मानकर, जीवन पर्यंत इसके लिए केवल दवाइयों पर ही निर्भर रहना अपना भाग्य मान लेते हैं। हृदयरोग एक अनियमित जीवनशेली से उतपन्न होने वाला रोग है और प्रारम्भिक अवस्था मे इसे जीवन चर्या में आवश्यक परिवर्तन करके ठीक किया जा सकता है। आयुर्वेद में इसके लिए हमारे जीवन के दो मूल अंगज़ हमारा आहार अर्थात भोजन कैसा हो और हमारा विहार अर्थात रहन सहन कैसा हो इस पर विस्तृत वर्णन किया है। इसके साथ ही आयुर्वेदिक औषधियों के अनमोल भंडार में हृदयरोग की कुछ गम्भीर स्थितियां जैसे हर्ट की नलियों में ब्लॉकेज होना, हर्ट के वाल्व खराब होना,हृदय की आकृति बढ़ना,मायोकार्डियल इंफार्कशन, धड़कन का अनियमित हो,
इत्यादि के लिए उचित उपचार भी उपलब्ध है।हमारे शरीर के प्रत्यंग में निरन्तर मेटाबोलिक प्रोसेस चलती ही रहती है जिसके कारण कई प्रकार के टॉक्सिन्स का निर्माण भी होता है, जो शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक हैं । साथ हि ये शरीर मे होने वाली एजिंग की प्रोसेस को भी फ़ास्ट कर देते है जिससे कमआयु में ही वृध्दावस्था के लक्षण दिखने लगते है।
पंचकर्म द्वारा शरीर का शोधन

टॉक्सिन की बड़ी मात्रा मल मूत्र ओर पसीने के रूप में शरीर से बाहर चली जाती है, किंतु इसका कुछ न कुछ भाग शरीर मे शेष रह जाता है । आयुर्वेद के अनुसार यह सूक्ष्म मल आम का रूप लेकर सभी व्याधियो को उतपन्न कर सकता है। इससे बचने और शरीर को पुनः निर्मल ओर बलशाली बनाने हेतु आयुर्वेद का एक यूनिक कंसेप्ट है पंचकर्म जिसका उपयोग करके शरीर का पूर्ण रूपेण शुद्धिकरण किया जा सकता है।
आयुर्वेद का वरदान है रसायन चिकित्सा

रसायन चिकित्सा का अर्थ है ऐसे उपाय करना जो बृद्धवस्था के लक्षणों को रोककर रखे । इसके लिए व्यक्ति की अपनी शरीर प्रकृति के अनुसार विभिन्न ओषधियों का उपयोग किया जाता है जिससे शरीर को पुनः रोगमुक्त करके सामान्य जीवन जिया जा सकता है